Tuesday, November 6, 2007

मैं अपने मन कि गहराइयों में

मैं अपने मन
कि गहराइयों में
झांक कर देखा
वहाँ जो थी
वह बाहर में
खड़ी नही थी

शब्दों के आइने में
धोखा खाना
कितना आसान है

दूसरे को अपना
जलवा दिखाना
कितना आसान है
मैं जानता हूँ

इस दुनिया में
मेरा कोई नहीं
जब भी किसी
रस्सी को पकड़ा
कुएं से निकालने को
रस्सी छोड़ गयी
पानी निकालने वाली ने
शायद रस्सी
टूट भी जाती
मेरे भार से
पर मैंने अपना
भार तो नहीं
केवल ईमेल
लिखा था तुमको
तुम वह भी नहीं
उठा सकी
तो लगता है
मुजे इस कुएं से
निकालने वाला कोई नहीं
मैं रह जाऊँगा यहीं
एक कछुए कि तरह
सैकरों वर्षों तक
जीनेवला
पर हूँ अकेला
अपनी गर्दन को
भीत कर भी सकूँगा क्या
गीता में श्याम के
उपदेश जैसा
अपनी कामनाओं
पर नियंत्रण
अपनी भावनाओं
पर नियंत्रण ....

-श्याम २८.१२.२००६

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