Tuesday, November 6, 2007

वादा तोड़ने का मैं आदी नहीं

एक बार नहीं मैं मिल तो
तुम रूठ गयी
मैं खोजा तुमको कितनी बार
तुम कहाँ गयी थी
किसके पास
मैं रोता रहा
पर खोजता रह तुम्हे
तुम तो किसी और के
अन्कपाश में लिपटी थी
पर भोग तुमने ही
उसका डंक
क्या समझती हो तुम
कि सभी डंक वाले
ही होते हैं
कोई-कोई डंक वाला होता है
पर मरे जाते हैं
निर्दोष विषहीन
जो होते हैं प्रकृति
के पुत्र
करते हैं रक्षा
प्रकृति की
पर तुम तो
प्रकृति की
सबसे नाजुक कला हो
बनाया है जिसे उन्होने
बड़े सहजकर
काले - काले बाल
बड़ी-बड़ी आँखें
गोरे-गोरे गाल
लाल-लाल होठ
मुस्काती हुयी
नीचे का विवरण करूं
तो नीच कहोगी
ना करूं तो
मूर्ख कहोगी
वैसे मैं ऐसा
मूर्ख नहीं
कि समझता नहीं
क्या बात है
कैसी बात है
किससे बात है
क्रोध तेरे नाक पर
पर इतने सुन्दर
तुम्हे बना दिया
भले मेरा बना
खेल ख़त्म हुआ
तुम खुश रहो
बस इच्छा है मेरी
मैं तो एक
नीलकंठ हूँ
दावानल पीने का
आदी हूँ
दवा नहीं करूंगा
वादा रह हमारा
वादा तोड़ने का आदी
मैं नहीं ....
- श्याम २६.१२.२००६

मैं अपने मन कि गहराइयों में

मैं अपने मन
कि गहराइयों में
झांक कर देखा
वहाँ जो थी
वह बाहर में
खड़ी नही थी

शब्दों के आइने में
धोखा खाना
कितना आसान है

दूसरे को अपना
जलवा दिखाना
कितना आसान है
मैं जानता हूँ

इस दुनिया में
मेरा कोई नहीं
जब भी किसी
रस्सी को पकड़ा
कुएं से निकालने को
रस्सी छोड़ गयी
पानी निकालने वाली ने
शायद रस्सी
टूट भी जाती
मेरे भार से
पर मैंने अपना
भार तो नहीं
केवल ईमेल
लिखा था तुमको
तुम वह भी नहीं
उठा सकी
तो लगता है
मुजे इस कुएं से
निकालने वाला कोई नहीं
मैं रह जाऊँगा यहीं
एक कछुए कि तरह
सैकरों वर्षों तक
जीनेवला
पर हूँ अकेला
अपनी गर्दन को
भीत कर भी सकूँगा क्या
गीता में श्याम के
उपदेश जैसा
अपनी कामनाओं
पर नियंत्रण
अपनी भावनाओं
पर नियंत्रण ....

-श्याम २८.१२.२००६